पतंग
घरकी खिड़की के पास खड़ा हूँ!
देख रहा हूँ
सामनेवाले 'बाल उद्यान' के बीचोबीच
खड़े नीम के पेडकी
डाल से फसी हुई
एक पीली पतंग!
खुले आसमान मे
फिरसे उड़ान के लिए
उसकी ज़िद, वो खीचतान
और हर कोशिश के साथ
डाल की पकड़ का और मजबूत
होते जाना!
पतंग की फड़फड़ाहट
और उसका फटकार
वहीं के वहीं बिखर जानेकी बेबसी!
मैं खिड़की बंद कर देता हूँ
लकिन पतंग की वो फड़फड़ाहट
मेरे कानो मे गूँजती रही!